भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुम्हार के हाथ से / विहाग वैभव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यही सही समय है जगत की पुनर्रचना की
मुनादी पिटवाकर इसी दम
सृष्टि की सभी कार्यवाहियाँ स्थगित की जाएँ

ग्रहों को ठहर जाना चाहिए जहाँ के तहाँ

चींटियो ! अब गह लो पाताल की नींद
ध्वनियो ! सन्नाटा रचो
अर्थो ! वापस आओ अपने शब्दों में
पीड़ाओ ! मुझे अचेत करो

जंगलो, पर्वतो, आसमानो
नए आकार के लिए पिघलो

मनुष्यो ! अपनी देह से बाहर निकलो

यही सही समय है मनुष्यता की पुनर्रचना की
मुनादी पिटवाकर इसी दम
मनुष्य की सभी कार्यवाहियाँ स्थगित की जाएँ ।