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कुरसी / ये लहरें घेर लेती हैं / मधु शर्मा
Kavita Kosh से
पुरानी उदासी में
कोई देर तक रहा होगा,
उसी का होना
यहाँ छूटा है इस तरह
छूटी हुई जगह में रह गई कुर्सी पर
हाथों से छूट गया कोई ख़याल
अभी तक अटका है आसमान में
ज़मीन-छूती डोर से बँधा?
उठा ली गई फ़सलों से
ख़ाली पड़े खेत में कुछ बीज हैं
जीवन वहीं से बीन रहे कव्वे
ढलती दोपहर के साये में।