कुरार गाँव की औरतें ऑफिस नहीं जातीं
वे  ऑफिस गए पतियों और
स्कूल गए बच्चों का करती हैं इंतज़ार
बतियाती हैं अड़ोस पड़ोस की औरतों  से
या  खोल देती हैं कोई क़िस्सा कहानी 
उनके  क़िस्सों में ज़्यादातर  होती हैं औरतें
कि  किस औरत का भारी है पैर
कौन पिटती है पति से
या  कौन लड़ती है किससे 
वे  इस बात में रखती हैं काफ़ी दिलचस्पी
कि  कल किसकी बेटी
बाहर  से कितनी लेट आई
और  किस लड़की ने
अपने  माँ बाप की डाँट खाई 
खाना - पानी, कपड़े - बच्चे
सिलाई -  कढ़ाई - लड़ाई
और  न जाने कितने कामों के बावजूद
किसी  ख़ालीपन का एहसास
भर  जाता है उनमें
बेचैनी, ऊब और झल्लाहट
और  वे बुदबुदाती हैं
समय की सुस्त रफ़्तार के खिलाफ़