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कुर्सी पर सोनेवाले कवि की चिट्ठियाँ / निकानोर पार्रा / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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1

मैं बताता हूँ, मामला क्या है
या तो हमें पहले से सब पता रहता है
या फिर कभी पता नहीं चलता ।

सही तलफ़्फ़ुज़ का इस्तेमाल
बस, इसी की इजाज़त हमें मिलती है ।

2

रातभर औरतों के सपने देखता हूँ
कुछ मेरा मखौल उड़ाती हैं
कुछ मुझे गर्दनिया लगाती हैं
मुझे छोड़ने को वे तैयार नहीं ।

हर वक़्त वे जंग छेड़े रहती हैं ।
तूफ़ानी बादल-सा
एक चेहरे के साथ मैं जग उठता हूँ ।

और लोग सोचते हैं
कि मैं सिरफ़िरा हूँ
या फिर मौत से डरा हुआ हूँ ।

3

ऐसे एक ईश्वर में विश्वास करना
बेशक मुश्किल है
जो अपने बन्दों को
अपने भरोसे छोड़ देता है
 
ज़माने के दस्तूर के रहम पर
सारी कमज़ोरियों के साथ
मौत की तो बात ही छोड़ दी जाए ।

4

मैं उनमें से हूँ
जिन्हें
धर्मविरोधी बातें पसन्द हैं ।

5

युवा कवियो !
लिखो, जैसा तुम चाहते हो
किसी भी शैली में
जो तुम्हें पसन्द हो ।

पुल के नीचे से काफ़ी ख़ून बह चुका
मुझे लगता है —
इस यक़ीन के चलते
कि एक ही रास्ता सही है ।
 
कविता में
सबकुछ जायज़ है ।

6

कमज़ोरियाँ
जर्जरता
और मौत

मासूम कन्याओं-सी
नाचती रहती हैं
हंस-सरोवर के इर्द-गिर्द
 
अधनँगी
मतवाली
मूँगा जैसे कामुक
उनके होंठ ।

7

यह मानी हुई बात है
कि चान्द पर
इनसान नहीं बसते हैं

कि कुर्सियाँ मेज़ हैं
कि तितलियाँ हमेशा इतराते फूल हैं
कि सच्चाई एक सामूहिक ग़लती है
कि शरीर के साथ आत्मा की मौत हो जाती है
 
यह मानी हुई बात है
कि झुर्रियाँ
ज़ख़्मों के दाग नहीं होतीं ।

8

जब कभी भी किसी भी वजह से
मुझे नीचे उतरना पड़ा
लकड़ी की अपनी छोटी सी मीनार से
ठण्ड से काँपते हुए
मैं वापस लौटा ।

काँपते हुए —
अकेलेपन से
डर से
दर्द से ।

9

ट्रॉली के सारे रास्ते
ग़ायब हो चुके हैं

वे सारे पेड़
काट चुके हैं
उफ़क पर भरे हुए हैं सलीब ।

मार्क्स को
सात बार नकारा जा चुका है
और हम जारी रखे हुए हैं
जारी रखना ।

10

मधुमक्खियों को
पित्तरस पिलाओ
मुँह में वीर्यरस डाल दो ।

ख़ून सने कीचड़ में लोटो
अन्तिम संस्कार के बीच छींको ।

गाय को दूहने के बाद
दूध
उसके मुँह पर फेंक दो ।

11

नाश्ते की गाज से
दोपहर की कड़कड़ाहट तक
रात्रिभोज की बिजली चमकने तक ।

12

मैं आसानी से
मायूस नहीं होता

सच-सच कहा जाय तो
मुर्दे की खोपड़ी देखकर भी
मुझे हंसी आती है ।
 
सलीब पर सोया हुआ कवि
आँसुओं से
तुम्हारा स्वागत करता है
जो वास्तव में उसका ख़ून है ।

13

यह कवि का फर्ज़ है
कि वह ख़ाली पन्ने को बेहतर बनाए ।

हालाँकि
मुझे शक़ है कि यह मुमकिन है ।

14

सिर्फ़
ख़ूबसूरती के साथ चलता हूँ
बदसूरती से तकलीफ़ होती है ।

15

आख़िरी बार कहता हूँ —
कीड़े भगवान हैं
तितलियाँ हमेशा इतराते फूल हैं
सड़े हुए दाँत
आसानी से टूटते हैं
मैं बेज़ुबान फ़िल्मों के दौर का हूँ ।

और
सम्भोग
एक साहित्यकर्म है ।

16

चिली की सूक्तियाँ :
 
लाल बाल वालों के चेहरे पर
झाइयाँ होती हैं

टेलिफ़ोन को पता होता है
वह क्या कहता है

कछुए का भी
उतना ही वक़्त
बरबाद होता है

उक़ाब से
रफ़्तार सीखने में
बहुत ज़्यादा
रुकना पड़ता है ।

17

विश्लेषण का मतलब
ख़ुद को त्यागना है
समझ के साथ सोचना
सिर्फ़ चक्कर लगाना है
वही देखते हो
जो देखना चाहते हो
जन्म से कुछ नहीं सुलझता
मानता हूँ कि मैं रो रहा हूँ ।

जन्म से कुछ नहीं सुलझता
सिर्फ़ मौत ही कहती है
कि सच्चाई क्या है
यहाँ तक कि कविता भी कायल नहीं करती ।
 
हमें सिखाया गया
कि स्थान नहीं है
हमें सिखाया गया
कि काल नहीं है
लेकिन यह भी कि
बूढ़ा होना अनिवार्य नियति है ।
 
विज्ञान कह दे
कि वह चाहता क्या है.
अपनी कविताएँ पढ़कर
मैं ऊँघने लगता हूँ
हालाँकि उन्हें ख़ून से लिखा है मैंने ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य