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कुर्सी / सरिता महाबलेश्वर सैल
Kavita Kosh से
कुछ लोग कुर्सी के उपर बैठे हैं
कुछ लोग कुर्सी के नीचे बैठे हैं
कुछ लोगों ने कुर्सी को घेर रखा है
कुछ लोग उचककर बस कुर्सी को ताक रहे हैं
और एक भीड़ ऐसी भी है
जिसने कभी कुर्सी देखी ही नहीं है
पर कुर्सी के ढांचे में जो कील ठोकी गई है
वो इसी भीड़ के पसीने का लोहा है