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कुलनाश का परिणाम / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान

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सनातन कुल धरम नास होई जैतैय रामा॥
टूअर-अनाथ बनी जैबैय हो हो सांवलिया॥
केना के कटतैय एतबर घोर पाप।
देखि-देखि सोच मोर होवैय हो सांवलिया॥
कुल में जो पाप बढ़तैय धरम-दरार फटतैय।
मिटी जैयतै दादा-बाप के नाम हो सांवलिया॥