भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुलनास मित्रडाह / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान
Kavita Kosh से
मान लो कि लोभ के कारण भैया दुरयोधन।
वुधि के खटाई में फूलावे हो सांवलिया॥
जरि को न दुःख बंश नाश होई जैते रामा।
घर घर जुलुम उठतैय हो सांवलिया॥
नेहियो से डाह करि घोर पाप लेतैय रामा।
चारो ओर बैरी मररंतैय हो सांवलिया॥
जानि बुझि भली भांति वंश नाश दोषवा हों
हमरौ त चाही ये हो सोचे हो सांवलिया॥