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कुवां पाणी कसी जाऊँ रे नजर लगी जाय / निमाड़ी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात
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कुवां पाणी कसी जाऊँ रे, नजर लगी जाय।
नजर लगी जाय, हवा लगी जाय।।
म्हारा साहेबजी का बाग घणा छे,
फुलड़ा तोड़णऽ कसी जाऊँ रे, नजर लगी जाय।
म्हारा साहेबजी का कुवां घणा छे,
पाणी भरणऽ कसी जाऊँ रे, नजर लगी जाय।
नजर लगी जाय, हवा लगी जाय।।