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कुविचार / प्रेमचन्द गांधी

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बर्फ़-सी रात है और है एक कुविचार (अभी तक जो कविता में ढला नहीं है) -- इवान बूनिन

निर्विचार की रहस्‍यमयी साधनावस्‍था
अभी बहुत दूर है मेरी पहुँच से कि
जब विचारना ही नहीं हुआ पूरा तो
क्‍या करेंगे निर्विचार का

अभी तो जगह बची हुई है
कुछ कुविचारों की कविता में
वे आ जाएँ तो आगे विचारें
मसलन, वासना भी व्‍यक्‍त हो कविता में कि
हमारी भाषा में बेधड़क
एक स्‍त्री कह सके किसी सुन्दर पुरुष से कि
आपको देखने भर से
जाग गई हैं मेरी कामनाएँ
या कि इसके ठीक उलट
कोई पुरुष कह सके
जीवन में घटने वाले ऐसे क्षणिक आवेग
कुछ अजनबी-से प्रेमालाप
लम्बी यात्राओं में उपजे दैहिक आकर्षण
राजकपूर की नायिकाओं के सुन्दर वक्षस्‍थल
अगर दिख जाएँ साक्षात
तो कहा जा सके कविता में
किसी के होठों की बनावट से
उपजे कोई छवि कल्‍पना में तो
व्‍यक्‍त की जा सके अभिधा में
और फिर सीधे कविता में

इवान बूनि‍न !
एक पूरी शृंखला है कुविचारों की
जो कविता में नहीं आई
मसलन, मोचीराम तो आ गया
लेकिन वो कसाई नहीं आया
जो सुबह से लेकर रात तक
बड़ी कुशलता के साथ
काटता-छीलत रहता है
मज़बूत हड्डियाँ -– माँस के लोथड़े
जैसे मोची की नज़र जाती है
सीधे पैरों की तरफ़
कसाई की कहाँ जाती होगी
एक कसाई को कितना समय लगता है
इन्सान को अपने विचारों और औजारों से बाहर करने में
महात्‍मा गाँधी का अनुयायी
अगर हो कसाई तो
कैसे कहेगा कि
उसका पेशा अहिंसक है
जब गाँधी के गुजरात में ही
ग़ैर पेशेवर कसाइयों ने मार डाला था हज़ारों को
बिना खड्ग बिना ढाल तो
उन कसाइयों के समर्थन में
क्‍यों नहीं आई कोई पवित्र धार्मिक ऋचा

घूसखोर-भ्रष्‍टाचारी भी लिखता है कविता
कैसे रिश्‍वत देने वाले की दीनता
कविता में करुणा बन जाती है
और घूस लुप्‍त हो जाती है
क्‍या इसी तरह होता है
कविता में भ्रष्‍टाचार का प्रायश्चित
०००
बर्फ़-सी रातों में
ज़र्द पत्‍तों की तरह झड़ते हैं विचार
अंकुरित होते हैं कुविचार
जैसे पत्‍नी, प्रेमिका, मित्र या वेश्‍या की देह से लिपटकर
जाड़े की ठण्‍डी रातों में
खिलते हैं वासनाओं के फूल
जीवन में सब कुछ
पवित्र ही तो नहीं होता, इवान बूनिन !
अनुचित और नापाक भी घटता है
जैसे जतन से बोई गई फ़सलों के बीच
उग आती है खरपतवार
मनुष्‍य के उच्‍चतम आदर्शों के बीचोंबीच
कुविचार के ऐसे नन्‍हें पौधे
सहज जिज्ञासाओं के हरे स्‍वप्‍न
जैसे कण्‍डोम और सैनिटरी नैपकिन के बारे में
बच्‍चों की तीव्र उत्‍कण्‍ठाएँ
ब्रह्मचारी के स्‍वप्‍नों में
आती होंगी कौन-सी स्त्रियाँ
साध्‍वी के स्‍वप्‍नों में
कौन-से देवता रमण करते हैं
कितने बरस तक स्‍वप्‍नदोष से पीड़ित रहते होंगे
ब्रह्मचर्य धारण करने वाले
कामेच्‍छा का दमन करने वालों के पास
कितने बड़े होते हैं कुण्‍ठाओं के बाँध
जिस दिन टूटता होगा कोई बाँध
कितने स्‍त्री-पुरुष बह जाते होंगे
वासना के सैलाब में
कुण्‍ठा, अपमान, असफलता और हताशा के मारे
उन लोगों की ज़िन्दगियों को ठीक से पढ़ो
कितने विकल्‍पों के बारे में सोचा होगा
ख़ुदक़ुशी करने से पहले उन्‍होंने
ज़िन्दगी इसीलिए विचारों से कहीं ज़्यादा
कुविचारों से तय होती है, इवान बूनिन !
मनुष्‍य को भ्रष्‍ट करते हैं
झूठे आदर्शों से भरे उच्‍च नकली विचार
इक ज़रा-सी बेईमानी का कुविचार
बच्‍चों की फ़ीस, माँ की दवा, पिता की आँख
और बीवी की नई साड़ी का सवाल हल कर देता है
कुछ जायकेदार कहीं पकने की गन्ध
जैसे किसी के भी मुँह में ला देती है पानी
कोई ह्रदय-विदारक दृश्‍य या विवरण
जैसे भर देता है आँखों में पानी
विचारों की तरह ही
आ धमकते हैं कुविचार ।