भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुहरे की दीवार खड़ी है / कात्यायनी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुहरे की दीवार खड़ी है!
इसके पीछे जीवन कुड़कुड़
किए जा रहा मुर्गी जैसा ।

तगड़ी-सी इक बांग लगाओ,
जाड़ा दूर भगाओ,
जगत जगाओ ।

साँसों से ही गर्मी फूँको,
किरणों को साहस दो थोड़ा
कुहरे की दीवार हटाओ ।

रचनाकाल : जनवरी-अप्रैल, 2003