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कृष्ण-प्रबोध / अमरेन्द्र
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उधौ मुझे साथ लिए चलो मथुरा की ओर
प्रेम के प्रतीक जहाँ गोपी ब्रजवासिनी
पापी हूँए अधम-सा मैं, दुनिया में अन्य कौन
हो सके तो माफ मुझे करना सुहासिनी
कौन मुँह ले के लौटूँ सोच नहीं पाता हूँ मैं
तुम हो महान गोपी चिर अनुरागिनी
कविता कुसुम लिए पूजेंगे सुकवि गण
कविता तुम्हारे बिना लगेगी भयाविनी ।