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कृष्ण मधु कपण हित मधुकर बनी है राधिका / रंजना वर्मा

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कृष्ण मधु के पान हित मधुकर बनी है राधिका।
प्राण प्यारे के लिए दिलबर बनी है राधिका।।

तरिकावलि बन गगन की गोपियाँ हैं डोलतीं
चंद्र मोहन के लिये अंबर बनी है राधिका।।

कृष्ण का प्रतिबिंब लेकर हर लहर सहला रही
श्याम नौका के लिए सागर बनी है राधिका।।

तीर यमुना के भरा घट शीश पर धर कर खड़ी
नीर-नटवर के लिये गागर बनी है राधिका।।

रक्त अधरों पर धरी वंशी बजाने के लिये
हरित मुरली का मधुर मृदु स्वर बनी है राधिका।।

फिर खिलायेंगे कभी घनश्याम आ इस बाग को
बस इसी अभिलाषा से पतझर बनी है राधिका।।

दर्शनों से हो नयन की तृप्ति यह उम्मीद है
 प्राण प्यारे के लिये निर्झर बनी है राधिका।।