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कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 10

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थी नगर गली सड़कें सुन्दर,
       सब जन के मन चित चाव रहा,
गुलाब जल सब जगह सुगंधित,
             चन्दन का छिड़काव रहा |
दीवार चमकती महलों की,
             मुख दिखलाई देता था,
धन्य द्वारिका देखा जिसने,
           अदभुत आनन्द लेता था |
सुन्दर सुन्दर कई बाग वहाँ,
             और नगर चहुँ ओर रहे,
उनमें रंग बिरंगे खिलते,
             फूल फूल चित चोर रहे |
तरह तरह के फल फूलों से,
               बाग बगीचे सुन्दर थे,
कुण्डों में निर्मल नीर भरा,
           कई एक वहाँ पर मंदिर थे |
तड़ाग बावली कुण्डों में,
          था साफ मधुर शीतल पानी,
आते देव सकल नहाने,
           वहाँ और कई ज्ञानी ध्यानी ।
आस पास वारिद की लहरें,
            पानी की लहर निराली थी,
हरे भरे सब वृक्ष खड़े,
           वहाँ चहुँ ओर हरियाली थी |
कहीं नहर नदी तालाब भरे,
        कहीं कहीं पर झरना झरते थे,
कोकिल शुक शिखी सारिका,
            कहीं मीठे बैन उचरते थे |
कहीं बाग भरा फूलों से था,
          सरसब्ज छटा दिखलाती थी,
कहीं अमोलक हंस हंसिनी,
              कोयल गाना गाती थी |