कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 18
विदाई के लिए निवेदन
रहते रहते विप्र ने, मन में किया विचार |
अब घर चलना चाहिए, ब्राह्मणी है लाचार ||
इक रोज कहा हो सीख मुझे,
कर याद नित्य हर्षाऊँगा |
प्रभु याद ग़रीबों की रखना,
अब आज्ञा हो घर जाउँगा |
बोले प्रभु ऐसा न करो,
दोय चार दिवस विश्राम करो |
आए बहुत दिनों से तुम,
खुश रहो नेक आराम करो |
जो कछु फ़रमाया प्रभु, सो सब ही है ठीक |
मगर अर्ज है दास की होनी चाहिए सीख ||
अंत: मन्थन
ले सीख प्रभु से चला विप्र,
माँगा न द्रव्य यह ठीक किया |
माँगन से देते तो सही,
न मांगना और पुनिक रहा |
कह करके ज्ञान भरी वाणी,
निज ब्राह्मणी को समझा दूंगा |
करता था विप्र विचार यही,
बातों में उसे भुला दूंगा |
दर्शन से आनन्द हुआ,
मगर मुझे कुछ भी न दिया |
माँगा न कछु अपने मुख से,
यह भी मैंने ठीक किया |
इधर सुदामा चल दिए, मारग करत विचार |
उधर कृष्ण लीला रची, महिमा अपरंपार ||