भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

केकरा आगू पीड़ा आपनों तोहीं / कस्तूरी झा 'कोकिल'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

केकरा आगू पीड़ा आपनों तोहीं कहं बतैइयै जी?
केकरा आगू आँसू आपनों तोही कहेॅ बहैइयै जी?

दिल में दरद, दरद डॉड़ा में कुल्हों दोनों टूटे छै
पैरॅ के नस-नस ऐंठे छै ईसब केकरा कहिये जी।

कछुवा नाँकी चलला पर भी छड़ी में धक्का लागै छै
अयलै की रंग कहॅ जमाना केकरा कही सुनैइयै जी?

घरॅ में बैठलेॅ कत्ते रहबै मोॅन ऊछीनों लागै छै,
रात बेरात के बात उठै छै केकरा साथ लगैइयै जी?

आँखीं में राखी केॅ तोरा गीत ग़ज़ल कुछ लिखै छी
मतुर आय केॅ कहतै हमरा पहिनें पिया सुनैइयैजी।

बैठली, सुतली जब ताँय रहलौहॅ लगैबिछौ ना हॅस्से छै
मुदा आय बॉही में लेॅ केॅ केकरा हाय झूलैइयै जी।

तोरा रंग कोय नैं छै सुन्दर, नैं मन-मंदिर रानी जी
दिल रे दुखड़ा केकरा कहियै, केनाँ हाय हरसैइयै जी?

26/03/15 पूर्वाहन 11.20 बजे