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केकरा सें कहबै दुख सहलऽ नै जाय / खुशीलाल मंजर
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केकरा सें कहबै दुख सहलऽ नै जाय
हे गे नुनुदाय लागै केनां केनां आय
सोलहो सिंगार करी घुंघटा जे लेबै
अबकी पिया जी केॅ मजा चखैबै
रात भर जगैबै राखबै हुनका जगाय
केकरा सें कहबै दुख सहलऽ नै जाय
हमरऽ तेॅ जिनगी छै दुक्खऽ के किताब
छन छन छगुनै छी मिलै नै हिसाब
जिनगी जंजाल भेले कुच्छू नै सुहाय
केकरा सें कहबै दुख सहलऽ नै जाय
रस रस बूंदिया सें भरै जेनां गगरी
तोरऽ हृदय केॅ पिया देभौं होनै भरी
जो कुछ करभऽ तेॅ देभौ अचरा ओढ़ाय
केकरा सें कहबै दुख सहलऽ नै जाय