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केते झाड़ फूंक भुतवा पुजयाबे को / शिवदीन राम जोशी
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केते झाड़ फूंक भुतवा पुजयाबे को,
इधर उधर ताक- ताक बात बहु बनाते हैं |
जटा लटा धारी केते ताक़ते पराई नारी,
जुवारी बेकार लोग उनके पास जाते हैं |
सत संगत से दूर असंगत में चूर-चूर,
लगे माल हाथ कहीं यें ही वह चाहते हैं |
कहता शिवदीन मुख कारो घर गोपाल हूँ के,
कपटी असंत दुष्ट मोजां उड़ाते हैं |