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केलि-किंछा / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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प्रीतम! आय फेरू
ढेर युगॅ के बीतला पर
ऊ चाँद ऐलॅ छै
इंजोरिया
वहेॅ महारास के ठहाका इंजोरिया
जेकरा में कन्हैया के
मुरली बाजलॅ छेलै
आरो सुध-बुध बिसारी केॅ
नाचली छेलै
वृन्दावन के कुमारी संग-संग बिहैली सब
आय वहेॅ पूर्निमा के रात छेकै
वहेॅ इंजोरिया रात।

हम्में यहू मानै छियै
कि ई द्वापर नै छेकै
नै तेॅ ई जघ्घॅ ऊ वृन्दावन छेकै
वगलॅ में यमुना नांकी कोनॅ नदियो नै
आरो नै तेॅ तेनुआ के गाछ छै
गाय के ऊ रं बथान भी नै छै
लेरू के ऊ रं उछलबॅ नै

मतुर रात तेॅ वहेॅ छेकै
अकाशो भी तेॅ वहेॅ छेकै
हवा भी वहेॅ रं बहै छै
तारा सीनी के टंकटकी लगाय केॅ
चाँद केॅ ताकबॅ भी वहेॅ रं
जेना कि साठ हजार गोपी सीनी के बीचॅ में
असकल्लॅ कृष्ण।
आरो आय
हम्में असकल्ली
वहेॅ रात
वहेॅ आकाश
हवा आरो तारा के बीच
चानन नदी के कछारी-कछारी
नजर भर खोजो रहली छियौं तोरा
प्रीतम-
रूइया से भरलॅ बोरिया नांकी मुलायम ई बालू
नागफनी के काँटॅ नाकी गड़ी रहलॅ छै
आभियो तेॅ आबॅ पिया
जब तांय तोंय नै ऐभौं
हम्में चान्द केॅ डूबै नै देबै

आँख भर देखाय रहलॅ ई जमीन
परती-परांट
ऊसर-टीकर
पहाड़-पत्थर
सगरे चाँदनी के बिछलॅ ई बिछौना
प्रीतम! जानै छॅ?
केकरा लेली बिछलॅ छे ई,
हमरै तोरहै लेली नी।
ऊ देखॅ बसबीट्टा में
हुलकै छ चान्द
बाँसॅ के फुनगी पर चढ़ी केॅ इंजोरिया
इतराबै छै
की सद्दोखिन बुलाबै छै
-पैहलकेॅ नांकी
आभियों तेॅ आबॅ पिया
जब तोंय तोंय नै ऐभौं
हम्में चान्द केॅ डूबेॅ नै देबै!

कि नै डूबेॅ देबै हम्में चान्द केॅ
नै जाबै देबै हम्में इंजोरिया केॅ
गवाही रहतै ई जेठौर पहाड़
हमरॅ बिलखै के-
इतिहास सुनतै सखी चानन ने।