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केवल एक तुम्हीं को जाना / सुमित्रा कुमारी सिन्हा
Kavita Kosh से
केवल एक तुम्हीं को जाना ।
श्वासों का निर्माल्य चढ़ाया,
वन्दन को यह छन्द रचाया,
भक्त तुम्हारे अगणित होंगे, मैंने तुम्हें देवता माना ।
तुम्हें नहीं अवकाश न बोलो,
बने रहो पाषाण न डोलो,
जली जा रही प्राण-आरती,इष्ट इसे आलोक बहाना ।
उड़ते पृष्ठों में क्षण क्षण के,
चित्रांकन कर अपने मन के,
मैं तुमको ही देख रही हूँ, मुझको अब क्या है अनजाना ।
शाप न मुझ को, जग को वर दो,
दर्शन से जग-जीवन भर दो,
विश्व तुम्हीं में, तुम्हीं विश्व में,बस इन नयनों से पहचाना ।
केवल एक तुम्हीं को जाना ।