केवल दो गीत लिखे मैंने
इक गीत तुम्हारे मिलने का
इक गीत तुम्हारे खोने का।
सड़कों-सड़कों, शहरों-शहरों
नदियों-नदियों, लहरों-लहरों
विश्वास किए जो टूट गए
कितने ही साथी छूट गए
पर्वत रोए-सागर रोए
नयनों ने भी मोती खोए
सौगन्ध गुँथी सी अलकों में
गंगा-जमुना-सी पलकों में ।
केवल दो स्वप्न बुने मैंने
इक स्वप्न तुम्हारे जगने का
इक स्वप्न तुम्हारे सोने का
बचपन-बचपन, यौवन-यौवन
बन्धन-बन्धन, क्रन्दन-क्रन्दन
नीला अम्बर, श्यामल मेघा
किसने धरती का मन देखा
सबकी अपनी है मजबूरी
चाहत के भाग्य लिखी दूरी।
मरुथल-मरुथल, जीवन-जीवन
पतझर-पतझर, सावन-सावन
केवल दो रंग चुने मैंने
इक रंग तुम्हारे हंसने का
इक रंग तुम्हारे रोने का ।
केवल दो गीत लिखे मैंने
इक गीत तुम्हारे मिलने का
इक गीत तुम्हारे खोने का ।