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केवल पलभर / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
धुनकी हुई रुई से
बादल को
मुट्ठी में भर लूं
बादल भरे तकिये पर
सिर रखकर
रो लेने दो न!
या सो लेने दो
और गृहस्थी के जंजालो
केवल पलभर
सपनों में खो लेने दो।