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केहु पथार डाल गइल बाटे लोर के / मिथिलेश गहमरी
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केहु पथार डाल गइल बाटे लोर के
काबिल जे बा इहाँ, ऊ देखावे बिटोर के
हम खुश रहीं, की चोट नया अबकी ना मिलल
ऊ, निफिकिर बा घाव पुरनका निखोर के
सपना हमार कैद बा मुट्ठी में उनकरा
रुपया, जुआरी राखेला जइसे चिमोर के
दिन-रात के हिसाब से इंसानो बँट गइल
साथी केहु अन्हार के, केहु अँजोर के
अपना बहस में बाज-कबूतर के भी रखीं
कबले कहत रहब कथा चनवाँ-चकोर के
माई के नेह-छोह करेजा में भरि गइल
दिहलस केहु जो हाथ प छाल्ही खखोर के
जिनगी झुरा गइल बिया जइसे कि डाढ़ि-पात
मिथिलेश मरले बा केहु अच्छत परोर के