के के जुल्म करे गोरां ने के के रोपे चाळे / हबीब भारती
के के जुल्म करे गोरां ने के के रोपे चाळे।
कित-कित कितने शहीद हुए मुक्ति के रख्वाले।।
चार महीने चार दिनां तक डटी-आज़ादी प्यारी,
इस आज़ादी की हमने भाई कीमत दी बड़ी भारी,
छब्बीस हज़ार मरे दिल्ली के म्हां बच्चे, नर और नारी,
पांच हजार गए नसीबपुर में, सेना खप गी सारी,
हरियाणे में कई हज़ार खपे बहे खूनं के नाळे
लाल डिग्गी पै झज्जर में कई सौ तो फांसी तोड़े थे
नंगे कर कर बांध दिए कई, खूब लगाए कोड़े थे,
बांध-बांध के बिछा दिए और फेर चढ़ाए घोड़े थे,
खून की डिग्गी भर गी थी, ना बच्चे-बूढ़े छोड़े थे,
ताते कर कर चिमटे लाए, पडै़ तनां पै छाळे।।
खडवाळी के सतरहां बन्दे सज़ा मौत की आए थे,
कच्चा थाणा पेड़ नीम का, फांसी पै लटकाए थे,
गाम गामड़ी नज़दीक गोहाणा, जुल्म गजब के ढाए थे,
तेरहा ठोळेदारां के भाई शीश कलम कराए थे,
बळा गाम गढ़ मान खाप का, सौ-सौ बागी गाळे
हांसी आळी लाल सड़क पै हज़ारां गए लिटाए थे,
सड़क बनी थी नदी खून की, न्यूं रोलर फिरवाए थे,
रूहणात गाम में कोल्हू चाल्ले, भोत घणे पिड़वाए थे,
चौबीसी के लीडर सारे महम मैं मरवाए थे,
करंग सुखा दिए नीमां ऊपर भरे पड़े थे डाळे।।
फेर साहब्बे चाल्ले, हरियाणा मैं हज़ारा गाम जळाए थे,
डांगर-ढोर खेत-खलिहाण सरेआम फुंकवाए थे,
कई सौ गाम लिलाम करे वे उजड़े बसे बसाए थे,
जघां-जघां पै लाश टांग दी, गिद्धां तै चुनवाए थे,
हबीब भारती जेळां मैं झोक्के, न्यों पड़े घरां पै ताळे।।