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कैक्टस मुखर कितने /राम शरण शर्मा 'मुंशी'
Kavita Kosh से
बेलौस
बेरंगा
फीका चन्द्रमा
टाँक दिया है
किसी ने
मेरी पिघलती
छत से ...
जहाँ-तहाँ बहते हैं
अन्धेरे के पनाले !
सूरजमुखी कितने
अस्त हुए अपने में
कैक्टस
मुखर कितने
अन्धेरे-उजाले ...
उच्छवास कितने
दहक उठे चिताओं से,
कितने आप्त-वचनों के
शव हमने पाले !