एक टुकड़ा भी
नहीं बादल का 
तुम्हारे आसमान में
कड़ी धूप
दिन भर की
काली रातों की
कड़कड़ाती ठंड
शुष्क ज़मीन
सूखी रेत
गहरे-गहरे तक
पानी नहीं जिसके
वहीं बसते हो तुम
हरे-हरह्रष्ट-पुष्ट
सोखते हो 
तुम कितना कम
जीवन रस
ज़रूरतें तुम्हारी कितनी कम...