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कैनवास पर काली लकीरें / बलदेव वंशी
Kavita Kosh से
बड़े करीने से
आकाँक्षा को काटकर
सजा दिया था कैनवस पर
मौन क्रन्दन !
तुम्हारा आत्मविश्वास
सम्वेदन
दुर्लभ स्पन्द
और सन्तुलन !
बड़ी महीन और तीखी और नफ़ीस
लकीरें कुछ
उकेर दी थीं तुमने
बचपन की
कैनवास पर खिंची
काली लकीरें
कला की क्या-क्या ख़ूबियाँ
बयाँ करतीं...
अचानक एक दिन घर आए
एक माहिर चित्रकार ने देखा वह
कोरा कैनवास
तो चकित रह गया । देखता
कि कैसे एक भोला बचपन
खिंची उन लकीरों में
उधर का
क्या कुछ नहीं कह गया !...