मैंने तुम्हें अपने ब्रश से
कैनवास पर क्या उतारा 
तुम तो रेखाओं को तोड़ 
रंगों को चुरा उड़ गए 
और छा गए आकाश पर
अभिसार का गुलाबी रंग 
एक धमक के साथ 
खड़ा है सामने 
और कैनवास पर बिखरे 
रंगों में खलबली 
मच गई है
 
काले, सलेटी, सफ़ेद 
रंगो का अट्टहास 
सहा नहीं जाता 
आहत है गुलाबी रंग 
चित्र से बिछड़कर 
व्याकुल भी
और इसीलिए 
मेरे चित्र में 
उठा है तूफान 
जिसे तुम और भी 
डरावना कर रहे हो 
बार-बार बिजली 
चमका कर 
बार बार गरजकर
 
ये कैसा परिहास है बादल 
मेरे चित्र को अधूरा कर 
तुम कौन-सा सुख 
पा रहे हो
जब कि पूरा आसमान
तुम्हें धारे रहेगा 
पूरी एक ऋतु