कैमरा : एक / कुबेरदत्त
सिर्फ़ दृश्य ही नहीं पकड़ता है कैमरा
दृश्यों के रंग भी बदलता है
ख़ुद नहीं रोता
दर्शक के तमाम आंसुओं को
श्रीमन्तों के पक्ष में घटा देता है।
चमड़े के सिक्कों को
बदलता है स्वर्ण मुद्राओं में
भाषा नहीं है कैमरा
गढ़ लेकिन सकता है रत्नजड़ित भाषा
उजाड़ में उतार देता है परिस्तान
धरती पर स्वर्ग बसा देता है।
जहाँ नहीं है धरती
रच सकता है धरती वहाँ।
जहाँ है उखड़ी हुई ज़मीन
बसाता है बस्तियाँ वहाँ।
दिन या रात
या गहरी रात के किसी प्रकाश-इन्तज़ाम में
कैमरा
स्लम और झोपड़-पट्टियों की कतारों को
बनाता है आकर्षक
सजाता है बन्दनवार शवों पर
मुर्दाघर को कर सकता है सराबोर
समृद्ध शास्त्रीय संगीत से।
गैस पिए कंकालों के ढेर पर
रच देता है विश्व कविता मंच।
नैतिकता के
असमाप्त प्रवचन के दरमियाँ
ताबड़तोड़ गालियाँ देता है कैमरा।
प्रेम-मुहब्बत को
बना देता है
प्रेम-मुहब्बत की डमी।
आमात्यों के पक्ष में रचता है
नई बाइबिल
रामायण, गीता नई,
वेद, कुरान, पुराण नए,
और तो और दास कैपिटल नई,
परिवारों और दिलों के
गुप्त कोनों, प्रकोष्ठों को
करता है ध्वस्त।
दिखाता नहीं है फकत युद्ध
रचता है युद्ध भी
खा सकता है इतिहास
उगल भी सकता है, इतिहास का मलबा,
निगल भी सकता है भूगोल —
राज और समाज का
एक चेहरे पर अजाने ही
चस्पाँ कर देता है चेहरा ए और बी और सी
या
कोई भी नोट, पुरनोट
मुद्रा, स्फीति, प्रतिभूति, बैंक,
राष्ट्रीय पुरस्कार
अन्तरराष्ट्रीय तमगे
किरीट या गोबर के टोकरे
आदमी की काया को करता है फिट
मनचाहे जानवर के सिर पर।
सिर के बल खड़े
औचक भौचक इनसानों को
बदलता है
भाप
इंजन
ईंधन
इलेक्ट्रान
शून्य
संख्या या गणित में।
अचेत इनसानों के इरादों तक को
गुज़ार देता है इन्फ्रा-रेड इन्द्रजाल से
या खालिस सैनिक संगीत में
अनूदित कर देता है।
सिलसिला शवाब पर है
कैमरा प्रमुदित है
हे दर्शक
चाहे तो
ग़ौर से देख
दिखाता जो कैमरा है
शक्तिशाली उससे भी
तीन आयामी फ़िल्में असंख्य
चलती हैं तुम्हारी चेतना के पर्दे पर
तुमने ज़्यादा देखा है।
अभी तो
कुछ-कुछ नींद में हो
नहीं जो तुम्हारी कमाई हुई पूरी-पूरी
तुम चाहो तो
जा सकते हो
कैमरों के पीछे
चाहो तो
मोड़ सकते हो
कैमरों का लैंस भी
मोड़ते जैसे हो बन्दूक की नाल
कभी-कभी।
यक़ीन कर
हे दर्शक
व्यू फाइण्डर देखेगा वही
जो तुम देखना चाहोगे।
तय करो
कहाँ रहोगे अन्ततः
कैमरों के आगे
या पीछे?