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कैसा अजीब देखो चक्कर ये चल रहा है / रंजना वर्मा

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कैसा अजीब देखो चक्कर ये चल रहा है।
कोई दिल बदल रहा है कोई दल बदल रहा है॥

गुठली थी हमने बोयी सोचा था आम होगा
हर डाल पर यहाँ तो काँटा निकल रहा है॥

था बाग हमने सींचा अपना लहू बहा कर
उस पुण्य के बगीचे में पाप फल रहा है॥

प्रातः अभी हुआ था लाली अभी भी छायी
सूरज अभी से कैसे पश्चिम में ढल रहा है॥

कैसी चुनाव चर्चा, किसका चुनाव होगा
हर आदमी यहाँ जब चोला बदल रहा है॥