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कैसा यह उपहार ज़िन्दगी / ओम नीरव
Kavita Kosh से
कैसा यह उपहार ज़िन्दगी?
किसका यह प्रतिकार ज़िन्दगी?
तिल-तिल गलती रही जन्म से
जन्मजात बीमार ज़िन्दगी।
हो न सकी यह कभी किसी की
लगती बड़ी लबार ज़िन्दगी।
कौन करे इससे गठबंधन
खड़ी मृत्यु के द्वार ज़िन्दगी।
'है या नहीं' अनिश्चित यह भी
कोरा मिथ्याचार ज़िन्दगी।
कटु यथार्थ का मृदु सपनों से
हो जैसे परिहार ज़िन्दगी।
सोहर का मरघट से 'नीरव' ,
एक सफल अभिसार ज़िन्दगी।
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आधार छंद-चौपाई
विधान-16 मात्रा, अंत में गाल वर्जित