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कैसा सबात है कि रवानी भी साथ है / परवीन शाकिर
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कैसा सबात<ref>स्थिरता</ref> है कि रवानी भी साथ है
वापस हैं और नाव में पानी भी साथ है
आसेब<ref>प्रेतबाधा</ref> कौन सा है तआकुब<ref>पीछा करना </ref> में शहर के
घर बन रहे हैं नक्ल ए मकानी भी साथ है
यूँ ही नहीं बहार का झोंका भला लगा
ताज़ा हवा के याद पुरानी भी साथ है
हर किस्सागो ने दीदा-ए-बेख्वाब<ref>बिना सपनों वाली आँखें </ref> से कहा
इक नींद लाने वाली कहानी भी साथ है
हिज़्रत का एतबार कहाँ हो सके कि जब
छोड़ी हुई जगह की निशानी भी साथ है
शब्दार्थ
<references/>