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कैसी आज़ादी / महेश उपाध्याय
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उठो देश के जन-गण-मन
दे दो अपना तन-मन-धन ।
कैसी आज़ादी भाई
भाई का दिल है काई
काई खाती अपनापन
अपनापन ही है जीवन ।
आँगन की बदली काली
काली निगले ख़ुशहाली
ख़ुशहाली होगी रखनी
रख पाएँ तब अमन-चमन ।
छुपा बहारों में पतझर
पतझर की ख़ूँख़्वार नज़र
नज़र रहे चौकस आगे
आगे बढ़ते चलें चरन ।