कैसी कैसी हस्तियाँ आख़िर ज़मीं में सो गयीं / अनु जसरोटिया
कैसी कैसी हस्तियाँ आख़िर ज़मीं में सो गयीं
कैसी कैसी सूरतें मिट्टी की आख़िर हो गयीं
फिर भी पावन ही रहीं वो, फिर भी निर्मल ही रहीं
सारे जग का मैल गँगा जी की लहरें धो गयीं
वो मिरे बचपन की सख़ियाँ वो मिरी हमजोलियाँ
जाने किस नगरी गयीं, किस देस जा कर खो गयीं
देख लेना एक दिन फ़स्लें उगेंगी दर्द की
दिल की धरती में मिरी आँख़ें जो आँसू बो गयीं
जाने किन किन मुश्किलों का सामना उन को रहा
अपने घर की चारदीवारी से बाहिर जो गयीं
तुम भी आ जाओ हमारा हाल तुम भी देख लो
बदलियाँ आ कर हमारे हाले-दिल पर रो गयीं
क़ैद उस में रात भर के वास्ते भँवरा रहा
जब कमल की पत्तियाँ मुँह बंद शब को हो गयीं
पूजते हैं हम उसे मंदिर की मूरत की तरह
अपनी आँखें उस के पैरों से लिपट कर सो गयीं
नफ़रतों के मौसमों की बादशाहत है 'अनु'
अब ज़बानें भी कटारों के मुआफ़िक़ हो गयीं