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कैसे-कैसे सपने दिल में पाले लोग / राकेश जोशी

कैसे-कैसे सपने दिल में पाले लोग
फिर भी लटकाते हैं दिल पर ताले लोग

गूंगे-बहरे लोगों की इस बस्ती में
मिलते हैं कानों में रूई डाले लोग

थोड़ा और सफ़र बाकी है ये कहकर
कैसे-कैसे छुपा रहे हैं छाले लोग

सूट पहनकर सजे-धजे मिल जाते हैं
धरती को बदसूरत करने वाले लोग

घर के बाहर खूब झाड़ियाँ काटेंगे
घर में सदा बचाकर रखते जाले लोग

मैं उनके दिल की सब बातें सुनता हूँ
जब भी मिल जाते हैं भोले-भाले लोग