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कैसे कहौँ कोक वे तो शोक ही मे रहेँ निशि / तोष

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कैसे कहौँ कोक वे तो शोक ही मे रहेँ निशि ,
ये तो शशिमुखी सदा आनँद सोँ हेरे हैँ ।
कैसे कहौँ करि कुम्भ वे तो कारे करकस ,
ये तो चीकने हैँ चारु हार ही सोँ घेरे हैँ ।
कैसे कहौँ कौल वे तो पकरे बिथुरि जात ,
ये तो गोरे गाढ़े आछे ठाढ़े आपु नेरे हैँ ।
याही है प्रमान तोष उपमा न आन ,
प्यारी तरु तरुनाई ताके फल कुच तेरे हैँ ।


तोष का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।