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कैसे दर्द सहेगी शबनम / कमलकांत सक्सेना
Kavita Kosh से
मादक मौसम के सिराहने,
मचले हों मीठे उलाहने
कैसे मौन रहेगी सरगम?
गाएगी वह गीत प्यार के, वासन्ती मनुहार के!
जब, जागी हुई जवानी हो,
नयनों में नयी कहानी हो,
सांसों में मल्हार छिपेहों,
मौजों में जगी रवानी हो,
खिलखिलाकर खिले गुलमुहरी,
गुदगुदाने लगे हवा अरी!
कैसे विरह सहेगी प्रीतम?
गाएगी वह गीत प्यार के, वासन्ती मनुहार के!
मेजबान हो अगर अंधेरा,
मेहमान हो जाए उजेरा,
प्रकृति प्रेमिका को हर लेगा,
ताक लगाए जो कि चितेरा।
चांद सितारे मौन देखते,
संयोगों को प्रश्रय देते,
कैसे दर्द सहेगी शबनम?
गाएगी वह गीत प्यार के, वासन्ती मनुहार के!