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कैसे भोग लगाऊँ / मधुरिमा सिंह
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कैसे भोग लगाऊँ
जोगी ,
कैसे भोग लगाऊँ
पाप से जूठी मन की तुलसी कैसे भोग लगाऊँ
जनम-जनम की भोगी काया कैसे सेज सजाऊँ
तेरे मन की भूलभुलैया सदा-सदा खो जाऊँ
भोग की नदिया में अग्नि के आखर फूल चढ़ाऊँ
जोगी मै तो कफ़न भी अपना केसरिया रंगवाऊँ
तन की लकड़ी चिता की लकड़ी साथ-साथ जलवाऊँ
तेरी कुटिया के द्वारे पर अपनी राख बिछाऊँ
जले हाथ की जली लकीरें भाग कहाँ पढवाऊँ
पत्थर के पन्नो पर जोगी काँच का कलम चलाऊँ
मधु तेरे बिन जीना कैसा कैसे तुझे बताऊँ