कैसे लिखदूँ सिंगार प्रिये? / शैलेन्द्र सिंह दूहन
सुन भूखों का चीत्कार प्रिये!
कैसे लिखदूँ सिंगार प्रिये?
हर मौसम की साध जली है
चोटी को बुनियाद खली है,
डूबी है कच्ची कलियों की
सूखे में पतवार प्रिये!
कैसे लिखदूँ सिंगार प्रिये?
सच कहना भी भूल लगे अब
रिश्वत पा कर फूल खिले सब,
लूट रहे गुलशन को माली।
धरने पे हैं खार प्रिये!
कैसे लिखदूँ सिंगार प्रिये?
बिखरे हैं नातों के बन्धन
इक कमरे में सौ-सौ आँगन,
भावों के किरचों से टपकें
टप-टप आँसू लाचार प्रिये!
कैसे लिखदूँ सिंगार प्रिये?
दीवाली के दीप बुझे हैं
होली के भी रंग चुभे हैं,
ईद मनी दहशत में फिर से
ले हाथों में अंगार प्रिये!
कैसे लिखदूँ सिंगार प्रिये?
बापू के बन्दर दे ताली
इक दूजे को बकते गाली,
अवसर पा पल में दल बदलें
हैं कूदन में होशियार प्रिये!
कैसे लिखदूँ सिंगार प्रिये?
शैशव की कुनमुन गुमसुम है
बचपन से ही बचपन गुम है,
घायल हैं अब माँ-बाबा के
लोरी ममता पुचकार प्रिये!
कैसे लिखदूँ सिंगार प्रिये?
भूल सभी मजदूरों को मैं
दीन दुखी मजबूरों को मैं,
पी तेरी आँखों से मदिरा
क्योंकर करलूँ अभिसार प्रिये?
कैसे लिखदूँ सिंगार प्रिये?