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कैहने बनलोॅ छोॅ अनजान रं / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो

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कैहने बनलोॅ छोॅ अनजान रं?
तनी बातो तेॅ करोॅ इन्सान रं?

आदमी सें आदमी के दूरी की
बढ़ी गेलोॅ छै सूरज-चान रं?

परिचय छौं मतुर चीन्है नै छोॅ
सूनोॅ छोॅ हेरैलोॅ मुस्कान रं?

पता नै कोन सोचोॅ में डुबलोॅ छोॅ
अदमरुवोॅ-अनसैलोॅ मूॅ-ठान रं।

बोलै छोॅ-”जमाना अजूबा ऐलै
संकट नै धरम-ईमान रं।"

की सच, की झूठ के बोल
जिनगी छै नेता के बयान रं।

मलय के हवा हिमालय तक दौड़े छै
हिमालय-जल कन्या कुमारी के जान रं।

जब तक नै बुझने छोॅ प्रेम के कूबत
तभियें तक तनलोॅ छोॅ अभिमान रं!