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कॉंच के घट हम / एक बूँद हम / मनोज जैन 'मधुर'
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काँच के घट हम
किसी दिन फूट जायेंगे
देह काठी कट रही
है काल आरी
काल के हाथों कि
प्रत्यंचा हमारी
प्राण के शर देह धनु से
छूट जायेंगे
देह नौका भव जलधि से
तारती है
मोह माया क्रोध को
संहारती है
उम्र के तट हम
किसी दिन टूट जायेंगे
पुण्य का भ्रम बेल मद की
सींचता है
पाप भव के जाल में मन खींचता है
क्या पता है कब नटेश्वर
लूट जायेंगे