भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोई आवारा हवा मुझको उड़ा ले जाए / साग़र पालमपुरी
Kavita Kosh से
कोई आवारा हवा मुझको उड़ा ले जाए
या कोई लहर किनारे से उठा ले जाए
वो जहाँ भी हो मुझे याद तो करता होगा
कोई उस तक मेरा पैग़ाम-ए-वफ़ा ले जाए
है तमन्ना जिसे क़तरे से गोहर बनने की
उसको कब जाने घटा कोई कहाँ ले जाए
फूल जो आज शगुफ़्ता है उसे देख तो लो
जाने कल उसको कहाँ बाद-ए-सबा ले जाए
उसके इसरार को टालें भी कहाँ तक यारो
अब जहाँ चाहे हमें दिल का कहा ले जाए
आशियाँ अपना न साहिल पे बनाओ ‘साग़र’
उसको सैलाब अचानक न बहा ले जाए