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कोई आवारा हवा मुझको उड़ा ले जाये / साग़र पालमपुरी

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कोई आवारा हवा मुझको उड़ा ले जाये

या कोई लहर किनारे से उड़ा ले जाये


वो जहाँ भी हो मुझे याद तो करता होगा

कोई उस तक मेरा पैग़ाम—ए—वफ़ा ले जाये


है तमन्ना जिसे क़तरे से गौहर बनने की

उसको कब जाने कहाँ कोई हवा ले जाये


फूल जो आज शगुफ़्ता है उसे देख तो लो

जाने कल उसको कहाँ बाद—ए—सबा ले जाये


उसके इसरार को टालें भी कहाँ तक यारो !

अब जहाँ चाहे हमें दिल का कहा ले जाये


आशियाँ अपना न साहिल पे बनाओ ‘सागर’!

इस को सैलाब अचानक न बहा ले जाये