कोई आहट न कोई डगर सामने / नसीम अजमल
कोई आहट न कोई डगर सामने ।
एक अक्स-ए-सफ़र<ref>सफ़र का प्रतिबिम्ब</ref> सरबसर<ref>नितान्त</ref> सामने ।
आसमाँ पर लहू<ref>ख़ून</ref> गुल<ref>फूल</ref> बिखरता हुआ
और उभरता हुआ मेरा सर सामने ।
वो अकेला हज़ारों से लड़ता रहा
जंग होती रहे रात भर सामने ।
नन्हीं मुन्नी दुआओं का हासिल है क्या
लुट गया सारा रख़्त-ए-सफ़र<ref>सफ़र का साज़-ओ-सामान</ref> सामने ।
टूट कर सारे मंज़र बिखरने लगे
बेतहाशा उड़े बाम-ओ-दर<ref>छत और दीवार</ref> सामने ।
यक-ब-यक<ref>अचानक</ref> सारा जंगल सिमटने लगा
हुए ज़ेर-ए-ज़मीं<ref>ज़मीन के नीचे</ref> सब शजर सामने ।
कश्तियाँ टूट कर सब किनारे लगीं
कैसे आसेब<ref>प्रेत</ref> का है सफ़र सामने ।
कोई अवतार तो इस ज़मीं पर मिले
आए कोई तो पैग़ाम्बर सामाने ।
फ़ासला मेरे पैरों में मंज़िल का है
वर्ना रहता कहाँ ये सफ़र सामने ।
उससे बिछड़े हुए एक मुद्दत हुई
फिर भी रहता है वो सरबसर सामने ।
टुकड़े-टुकड़े बदन, रक़्स करता हुआ
इक ज़रा सा उधर, बाम पर, सामने ।
इक झलक सब्ज़ मिट्टी की आँखों में बस
शोला-शोला शफ़क़, लम्हा भर सामने ।
सर पे बूढ़ा गगन कब से रखा हुआ
रक़्स-ए-शम्स-ओ-क़मर<ref>चाँद-सूरज का नृत्य</ref> आँख भर सामने ।
कोई मुझमें मुझे क़ैद करता हुआ
फेंक कर ये लाल-ओ-गोहर<ref>हीरे-मोती</ref> सामने ।
क्या करूँ मेरा मन था ख़लाओं<ref>शून्य</ref> में गुम
वो दिखाता रहा सब हुनर सामने ।
सीना-सीना सफर, ये तिलिस्म-ए-हुनर<ref>हुनर का जादू</ref>
देख 'अजमल' है रफ़्तार भर सामने ।