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कोई एक क्षण अकेला नहीं है / केदारनाथ अग्रवाल
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काल में
कहीं कोई एक क्षण
अकेला नहीं है
निदाग अलग-सबसे अलग
कि
हो तो वही हो
मात्र उसकी प्रतीति हो
और कुछ न हो उसके साथ
न अन्य की प्रतीति हो
रचनाकाल: ०५-११-१९७०