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कोई जब राह न पाए, मेरे सँग आए / मजरूह सुल्तानपुरी
Kavita Kosh से
कोई जब राह न पाए, मेरे संग आए
के पग पग दीप जलाए, मेरी दोस्ती मेरा प्यार
जीवन का यही है दस्तूर
प्यार बिना अकेला मजबूर
दोस्ती को माने तो सब दुख दूर
कोई काहे ठोकर खाए, मेरे संग आए ...
दोनो के हैं रूप हज़ार
पर मेरी सुने जो संसार
दोस्ती है भाई तो बहना है प्यार
कोई मत चैन चुराए, मेरे संग आए ...
प्यार का है प्यार ही नाम
कहीं मीरा कहीं घनश्याम
दोस्ती का यारो नहीं कोई दाम
कोइ कहीं दूर ना जाए, मेरे संग आए ...