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कोई तुम जैसा था, ऐसा ही कोई चेहरा था / खलीलुर्रहमान आज़मी
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कोई तुम जैसा था, ऐसा ही कोई चेहरा था
याद आता है कि इक ख़्वाब कहीं देखा था ।
रात जब देर तलक चाँद नहीं निकला था
मेरी ही तरह से ये साया मेरा तनहा था ।
जाने क्या सोच के तुमने मेरा दिल फेर दिया
मेरे प्यारे, इसी मिट्टी में मेरा सोना था ।
वो भी कम बख़्त ज़माने की हवा ले के गई
मेरी आँखों में मेरी मय का जो इक क़तरा था ।
तू न जागा, मगर ऐ दिल, तेरे दरवाज़े पर
ऐसा लगता है कोई पिछले पहर आया था ।
तेरी दीवार का साया न खफ़ा हो मुझसे
राह चलते यूँ ही कुछ देर को आ बैठा था ।
ऐ शबे-ग़म, मुझे ख़्वाबों में सही, दिखला दे
मेरा सूरज तेरी वादी में कहीं डूबा था ।
इक मेरी आँख ही शबनम से सराबोर रही
सुबह को वर्ना हर इक फूल का मुँह सूखा था ।