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कोई तो बात है बाक़ी ग़रीबख़ानों में / हसीब सोज़

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कोई तो बात है बाक़ी ग़रीबख़ानों में ।
वगरना ज़िल्ले-इलाही और इन मकानों में ।

मुहाजिरों को पता है अजाब ऐ दरबदरी,
हयात काटनी पड़ती है शामियानों में ।