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कोई तो है..... / संजय पुरोहित

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कोई तो है जो
सहला जाता है,
मेरी यादों के श्वेत पखेरूओं को,
और कह जाता है,
मेरी अकहे भावों को

कोई तो है जो
छेड़ जाता है,
मेरे हिय दिव्य संतूर को,
और तरंगा जाता है
कोई मधु राग

कोई तो है जो
बिठला जाता है
कृति आतुर शब्दों को कतार में
और बरसा जाता है मुझे
काव्यसरिता में छपाक !

कोई तो है जो
सुगंधित कर जाता है,
मेरे प्राण की अणिमाओं को,
और ललचा जाता है,
प्रेरणाओं के नवबिम्ब

कोई तो है जो
सरका जाता है स्वप्न
मेरी नींदों के लिहाफ में,
और छितरा जाता है
मेरे तमस को

कोई तो है जो
छलका जाता है,
मधुकण मेरे नेत्रों के कोटरों में
और तृप्ता जाता है,
मेरे रोम-रोम रमी प्यास को,

कोई तो है जो,
पहना जाता है
मेरी जिजीविषाओं को चेहरों के लबादे,
और छाप जाता है,
निश्चल निर्मल मासूम पतंगे

कोई तो है जो
सींच जाता है,
मेरी बंजर अभिलाषाओं को,
और अंकुरा जाता है,
मेरी तरूणाओं के बीजों को,

कोई तो है,
हाँ, हाँ,
कोई तो है....