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कोई दोस्त नहीं मेरा / सुन्दरचन्द ठाकुर

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कोई दोस्त नहीं मेरा

वे बचपन की तरह अतीत में रह गए

मेरे पिता मेरे दोस्त हो सकते हैं

मगर बुरे दिन नहीं होने देते ऐसा


पुश्तैनी घर की नींव हिलने लगी है दीवारों पर दरारें उभर आई हैं

रात में उनसे पुरखों का रुदन बहता है

मां मुझे सीने से लगाती है उसकी हड्डियों से भी बहता है रुदन


पिता रोते हैं, मां रोती है फ़ोन पर बहनें रोती हैं

कैसा हतभाग्य पुत्र हूं, असफल भाई

मैं पत्नी की देह में खोजता हूं शरण

उसके ठंडे स्तन और बेबस होंठ

क़ायनात जब एक विस्मृति में बदलने को होती है

मुझे सुनाई पड़ती हैं उसकी सिसकियां


पिता मुझे बचाना चाहते हैं मां मुझे बचाना चाहती है

बहनें मुझे बचाना चाहती हैं धूप, हवा और पानी मुझे बचाना चाहते हैं

एक दोस्त की तरह चांद बचाना चाहता है मुझे

कि हम यूं ही रातों को घूमते रहें

कितने लोग बचाना चाहते हैं मुझे

यही मेरी ताक़त है यही डर है मेरा.