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कोई नहीं दरवाज़े पर इन्तज़ार में / सॉनेट मंडल / तुषार धवल

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यह दरवाज़ा यादों की एक सूनी नाव है
जो अकेली तिर रही है चरमराती आवाज़ में
उस भय भरती नदी में —
जो पकड़ कर भींच लेती है मुझे
भूतकाल में दौड़ जाने की उम्मीद के खिलाफ़
वह नाव —
जिसे मैं अपने ननिहाल जाती कच्ची सड़क से
देख सकता था।

यादों के शान्त गहरे पानी पर
बैलेंस बनाते काठ के पटरों की
चर्र-चों की आवाज़ें
जैसे किसी बियाबान से उठती आवाज़ें थीं
जो उन यादों में घुसने के खिलाफ चेतावनी थीं मेरे लिए

वहीं दूसरी तरफ़
अतीत की महक
भूतकाल से टहलती आती उन्हीं हवाओं के कन्धों पर सवार थी
जिसमें महक थी पिछली आँधी में गिरे कच्चे आमों की
गर्मी की ऊँघती दोपहर की आवाज़ों ने
अपनी बातों में फुसला कर मुझे उन हवाओं को सूँघने से रोक दिया

यह सिर्फ़ दो दशक पहले था
कि मेरी जिन्दगी छन्द थी
और अब — मैं गम्भीर कविताएँ चाहता हूँ.
मुक्त होने के ख़यालों में सबसे अधिक मुक्त था
क़ैद रहना
बचपन के अपने गाँव में
कच्ची सड़क, पानी
और आम के बग़ीचे में

वह सब कुछ था — बस कुछ ही पल पहले।
वे पल मेरी उम्मीद से बड़े हो गए हैं
और अब, जब मैं अपने नाना से मिलने आया हूँ
मैं सुन सकता हूँ
लपलपाती लू को
जो एक जोड़ा दरवाज़ों को झकझोरती
फड़ाफड़ाती हुई बहती है
उस दरवाज़े पर जहाँ कोई नहीं है इन्तज़ार में।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : तुषार धवल